यह एक दर्दनाक प्रेम कहानी थी, जो एक दुखद मोड़ पर समाप्त हो गई। एक युवती, जिसने अपने चचेरे भाई से बेइंतहा मोहब्बत की, समाज की बेड़ियों से लड़ते-लड़ते हार गई। परिवार और समाज के विरोध के कारण उसे अपनी प्रेम कहानी का अंजाम खुद लिखना पड़ा।
युवती ने जब अपने परिवार के सामने चचेरे भाई से प्रेम विवाह की इच्छा जाहिर की, तो उसे सख्ती से मना कर दिया गया। घरवालों ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन जब उसने हार नहीं मानी, तो उसे मानसिक और भावनात्मक रूप से प्रताड़ित किया जाने लगा। उसके सपनों को कुचल दिया गया, उसकी भावनाओं को तिरस्कार मिला।
समाज के ताने और परिवार के दबाव ने उसे इतना तोड़ दिया कि उसने पहले अपना सिर मुंडवा लिया, जैसे अपने दर्द को दर्शाने की कोशिश कर रही हो। लेकिन यह काफी नहीं था। हर तरफ से मिल रही जिल्लत और अपनों की बेरुखी ने उसे अंदर से खत्म कर दिया।
जिस दिन उसने आत्महत्या करने का फैसला किया, उस दिन उसने अपने हाथों से रोटियां बनाई। वह जानती थी कि अब वह कभी वापस नहीं आएगी। मरने से कुछ देर पहले उसने अपनी मां को आखिरी बार फोन किया और कहा, “मां, मैंने रोटियां बनाई हैं, खा लेना।” यह शब्द उसके टूटे हुए दिल और बिखरे हुए अरमानों की आखिरी निशानी थे।
मां उस समय शायद इस बात को सामान्य समझ रही थी, लेकिन कुछ ही पलों बाद, जब यह खबर आई कि उनकी बेटी ने खुद को खत्म कर लिया, तो दुनिया थम सी गई। घर में कोहराम मच गया, हर कोई उस आखिरी कॉल को याद कर सिहर उठा।
पुलिस जब मौके पर पहुँची, तो कमरे में सिर्फ सन्नाटा था और एक चिट्ठी पड़ी थी, जिसमें लिखा था, “मेरा गुनाह सिर्फ इतना है कि मैंने प्यार किया।” यह एक समाज के कठोर नियमों की ऐसी त्रासदी थी, जिसने एक मासूम जान को लील लिया।
अब सवाल यह उठता है कि क्या प्यार अपराध है? क्यों समाज की बेड़ियों में इंसान को जीने नहीं दिया जाता? क्या परंपराओं और रिवाजों से इंसान की खुशी ज्यादा मायने रखती है? यह घटना केवल एक लड़की की नहीं, बल्कि उन हजारों लोगों की कहानी है, जो समाज के डर से अपने प्यार की कुर्बानी देने को मजबूर हो जाते हैं।