ऐसे दुपट्टे में इतना ही सुरक्षित है। दिशा पाटनी बनीं खूबसूरत।
यह वाक्य केवल किसी सेलिब्रिटी की फोटो का वर्णन नहीं है, बल्कि समाज के विचारों पर गहरी चोट है। जब दिशा पटानी जैसे जाने-माने राहुल को इस तरह की घटना का सामना करना पड़ता है, तब यह सुझाव दिया जाता है कि आज के दौर में भी महिला की स्थिति का पैमाना क्या होगा?
दिशा पाटनी खूबसूरत हैं। उनकी स्वाभाविकता केवल उनके शरीर या शरीर से नहीं, बल्कि उनके व्यक्तित्व और चयन से है जो उनके दृढ़ जीवन की सच्चाई है। जब वह स्टाइलिश ड्रेसेज में सामने आती हैं, जब वह बिना पारंपरिक दुपट्टे के चमकती हैं, तब वह केवल अपनी पसंद को स्पष्ट नहीं करती हैं, बल्कि उन बेड़ियों को तोड़ती हैं जो महिलाओं की पसंद को ‘इज्जत’ से पेश करती हैं।
“ऐसे दुप्पटे में इतना ही सुरक्षित है।” यह वाक्य दिशा पाटनी की तस्वीर पर लिखा है, लेकिन इसका अर्थ गहराई में समाज की सोच को चुनौती देना भी है। इसमें कहा गया है कि सीता की लंबाई या गहराई नहीं है, बल्कि इंसान की नियति और नजर में है, एक ऐसी सच्चाई है जिससे हम बार-बार मुंह मोड़ लेते हैं।
आज भी सोशल मीडिया पर जब भी कोई एक्ट्रेस इलेक्ट्रॉनिक ड्रेस में दिखती है तो उस पर तरह-तरह की टिपणियां आ जाती हैं। कोई कहता है “थोड़ा बूढ़ा कर दिखाओ”, तो कोई कहता है “इन्हें शर्म नहीं आती”। लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि उनके संप्रदाय किसी भी पुरुष की तरह ही वैध हैं। दिशा पटानी की खूबसूरती सिर्फ उनकी तस्वीरों में नहीं, बल्कि उस सामान में है जिससे वह हर स्टाइल को कैरी करती हैं।

दिशा पटानी का हर लुक, हर स्टाइल एक नई सोच को जन्म देता है। जब भी वह व्यापारिक मॉडलों में दिखता है, तब भी उनकी पसंद रहती है, और जब वह वेस्टर्न प्लांट्स में आती है, तब भी उनकी पसंद पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है – यह बात लोगों को समझने की ज़रूरत है। दुपट्टा कागज़ हो या न हो, सीता की हिफ़ाज़त तब होती है जब देखने वाले की नज़र साफ़ हो जाती है।
दिशा पटानी जब भी कैमरे के सामने आती हैं तो वह सिर्फ एक एक्ट्रेस नहीं बल्कि एक प्रतिनिधि बन जाती हैं। लाखों लड़कियाँ अपनी पसंद से जीना चाहती हैं। जो यह खुलासा करते हुए कहते हैं कि “हमारे समान हमारे लैपटॉप से नहीं, हमारी सोच से है।” ऐसे में “ऐसे दुपट्टे में इतना ही सुरक्षित है” जैसा कि एक अनकहा बन जाता है, उन लोगों के लिए जो आज भी पुतले को फिल्म का आधार मानते हैं।
समाज का एक बड़ा वर्ग अब भी यही सोचता है कि लड़की पढ़ती रहेगी, समान ही मनेगी। लेकिन ये सोच तब टूटती है जब दिशा पटानी जैसी हस्ती के दोस्त कहते हैं कि उनकी खूबसूरती उनके स्टाइल में है, न कि किसी दुपट्टे में।
दिशा पटानी की पहचान उनके काम, उनकी वास्तुशिल्प और उनकी मेहनत से है। उन्होंने जो जहां पाया है, वह उनकी मेहनत की मांद है, न कि उनकी शैली की शैली है। फिर भी जब उनकी जमीन पर ऐसे प्लॉट होते हैं तो ये साफ हो जाता है कि समाज फिर भी उनकी ड्रेस से जज बनता है।
यह लेख किसी एक अभिनेत्री की बात नहीं कर रहा है, बल्कि यह उन सभी महिलाओं की आवाज है जो दुपट्टे की जगह आत्मबल को चुनती हैं। जो कहते हैं कि “ऐसे दुपट्टे में आटा ही सुरक्षित है” जबकि अन्य दुपट्टे में। उद्देश्य केवल देखने वाले की सोच में है।
दिशा पाटनी खूबसूरत हैं, क्योंकि वह खुद को लेकर सहज हैं। वह किसी की परिभाषा के अनुसार नहीं, अपनी पहचान के अनुसार है। यही मूल है, यही आत्मसम्मान है और यही असली है।
दुपट्टा पालन एक विकल्प हो सकता है, न कि अनिवार्यता। जब एक महिला अपने शरीर और वस्त्रों की प्रतिकृति की पेशकश करती है, तब वह सबसे अधिक सुरक्षित महसूस करती है। दिशा पटानी इस आत्मनिर्भरता की जीवंत मिसाल हैं। उन्होंने साबित किया कि सम्मान कमाया जाता है, मूर्तियां नहीं।
उक्ति तब होती है जब दृष्टि स्पष्ट हो जाए, जब सोच सकारात्मक हो, जब स्त्री को इंसान समझ जाए, वस्तु नहीं। और जब यह सब होगा, तब “ऐसे दुपट्टे में इतना ही सुरक्षित है” जैसी बातें पर हँसी नहीं आएगी, बल्कि वह एक बदलाव का प्रतीक बन जाएगी।
यह लेख केवल एक अभिनेत्री के जैसी दिखने वाली पोशाकों से बनी है, बल्कि उस सोच को पहले कर रही है जो अब भी महिलाओं की तरह दिखने वाली पोशाकों से बनी है। दिशा पाटनी खूबसूरत हैं, लेकिन उनकी असली खूबसूरती उस आवाज में है जो कहती है- मैं जैसा हूं, समवेत ही रह गया हूं। यही मेरी पहचान है, यही मेरी पहचान है।